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मालपुआ: एक मीठा रहस्य जो जीभ पर नाचे और दिल में गुदगुदी करे!

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मालपुआ: एक मीठा रहस्य जो दिल को गुदगुदाता है!

अरे भैया! क्या हालचाल? आज हम एक ऐसी चीज़ की बात करने वाले हैं, जो सिर्फ मिठाई नहीं, बल्कि एक फीलिंग है। वो चीज़ जो होली के दिन, शादियों में और बस जब मन करे तब… दिल को ‘वाह!’ का फील देती है। जी हाँ, आपने सही पहचाना! हम बात कर रहे हैं मालपुआ की!

अब आप कहेंगे, “अरे मालपुआ ही तो है, इसमें क्या खास?” ठहरिए! ठहरिए! जितनी सीधी ये मिठाई लगती है, उतनी है नहीं। ये तो एक मीठा रहस्य है, जिसकी कहानी इतनी पुरानी है कि आप सोच भी नहीं सकते। तो चलिए, आज हम इसकी कुंडली खोलते हैं, और जानते हैं कि ये महाशय आखिर आए कहाँ से।

मालपुआ: एक ‘सुपरस्टार’ मिठाई का इतिहास

तो बात कुछ ऐसी है कि मालपुआ आजकल का बच्चा नहीं है। ये तो हमारे बड़े-बूढ़ों का भी दादा है। कुछ इतिहासकार और पकवान विशेषज्ञ बताते हैं कि मालपुआ का जन्म आज से नहीं, बल्कि हज़ारों साल पहले हुआ था। जी हाँ, सही सुना आपने! ऋग्वेद के ज़माने में!

सोचिए, ऋग्वेद… वो समय जब हम लोग तो क्या, हमारी परछाई भी नहीं थी। उस समय भी लोग एक मीठी डिश बनाते थे जिसका नाम था ‘अपूप’ (Apupa)। यह मालपुआ का बड़ा भाई या दादाजी कह सकते हैं। अपूप को जौ के आटे, गुड़ और शहद से बनाया जाता था और फिर घी में तलकर देवताओं को भोग लगाया जाता था। अब आप खुद सोचिए, हमारे मालपुआ का रुतबा! ये तो देवों को भी पसंद था! मतलब, सोचिए… देवताओं का भी sweet tooth था! और हम सोचते थे कि Prasad सिर्फ लड्डू का ही franchise है। 😄

पुराने समय का ‘फूड ब्लॉगर’

अगर आपको लगता है कि फूड ब्लॉगिंग आजकल की चीज़ है, तो आप गलत हैं। उस समय भी लोग पकवानों पर लिखा करते थे। वात्स्यायन के ‘कामसूत्र’ और सोमेश्वर तृतीय के ‘मनसोल्लास’ जैसे ग्रंथों में भी इस अपूप का ज़िक्र है। ‘मनसोल्लास’ में तो मालपुआ बनाने की पूरी विधि लिखी हुई है, जिसे ‘पूपलिका’ कहा गया है। यानी, हमारे पूर्वज भी फूडी थे, और हर डिश की पूरी रेसिपी लिखकर रखते थे!

मतलब, वो जमाना ऐसा था कि
👉 इंस्टाग्राम नहीं, लेकिन ताड़पत्र थे।
👉 DSLR कैमरा नहीं, लेकिन कलम और स्याही थी।
👉 और #FoodieLife की जगह था — “भोग लगा दो भगवान को।”

क्या मालपुआ ‘विदेशी’ है?

अरे नहीं! बिल्कुल नहीं! कुछ लोग कहते हैं कि ये मिठाई ईरान या मध्य-पूर्व से आई है, क्योंकि वहाँ भी ऐसी ही मिठाई बनती है। लेकिन हमारे इतिहास के पन्ने बताते हैं कि हमारा मालपुआ सबसे पुराना है। इतिहास कहता है — मालपुआ का पासपोर्ट भारतीय है, वीज़ा वहाँ का है! 😄

असल में, हमारी किचन इतनी उदार है कि हमारी डिशें वहाँ तक पहुँच गईं।

मालपुआ की ‘शादी’ और ‘रंग-रूप’

मालपुआ सिर्फ एक मिठाई नहीं है, ये तो एक रिश्तेदार भी है। भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसकी अलग-अलग शादियाँ हुई हैं और हर जगह इसका एक नया रूप देखने को मिलता है।

  • बिहार-झारखंड: यहाँ मालपुआ को ‘महुआ’ के साथ मिलाकर बनाया जाता है और ये होली की जान होती है। इसके बिना होली अधूरी है।
  • ओडिशा: यहाँ मालपुआ थोड़ा पतला और कुरकुरा होता है, जिसे ‘अमृतापुआ’ कहते हैं और इसे खीर के साथ परोसा जाता है।
  • पश्चिम बंगाल: यहाँ इसे ‘पूआ’ कहते हैं और इसमें नारियल और सौंफ का फ्लेवर होता है।
  • उत्तर भारत: यहाँ तो मालपुआ रबड़ी के साथ अपनी दोस्ती के लिए मशहूर है। रबड़ी-मालपुआ… आह! क्या जोड़ी है! भाई, ये तो वही बात हुई जैसे राजकपूर-नर्गिस, या आलू-पराठा और मक्खन।

मालपुआ के कुछ किस्से और व्यंग्यात्मक सच

  • मालपुआ का ‘मीठा’ सच: मालपुआ को खाते समय लोग अक्सर एक गलती करते हैं। वो सोचते हैं कि इसे सिर्फ चाशनी में डुबोना है। जबकि, इसका असली मज़ा तब आता है जब चाशनी इसके अंदर तक चली जाए और हर बाइट में मिठास का फव्वारा फूटे।
  • ‘गोलू-मोलू’ मालपुआ: मालपुआ को ज़्यादा मोटा बनाने से वो अंदर से कच्चा रह सकता है। इसलिए उसे हमेशा ‘सही शेप’ और साइज़ का बनाना चाहिए, ताकि वो ‘गोलू-मोलू’ भी लगे और ‘अंदर से पक’ भी जाए।
  • एक ‘आलसी’ मिठाई: मालपुआ बनाने का काम बड़ा आसान है, बस घोल बनाओ, तलो, और चाशनी में डुबो दो। लेकिन सही घोल बनाने में ही असली कलाकारी है। अगर घोल में गांठ रह जाए, तो मालपुआ नहीं, ‘पत्थर’ बन जाएगा!

मालपुआ और बॉलीवुड कनेक्शन

सोचिए, अगर मालपुआ इंसान होता, तो बॉलीवुड में Superhit होता।

  • लुक्स? गोल-मटोल, सुनहरा।
  • रोल? हर त्योहार का hero
  • फैन फॉलोइंग? बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक — सर्वव्यापी

कहानी भी ऐसी — “दिल को छू लेने वाला, और जीभ को रोक न पाने वाला।”

छोटा-सा किस्सा

कहते हैं, एक बार किसी ने पंडित जी से पूछा — “प्रसाद में क्या बनाना चाहिए?”
पंडित जी ने कहा — “कुछ भी बना लो, पर मीठा ज़रूर हो।”
उस दिन मालपुआ बना और इतना पसंद आया कि देवताओं ने शायद ऊपर बैठकर कहा होगा —
“अब तो ये Permanent Menu में डाल दो!” 😄

तो भैया, अगली बार जब आप मालपुआ खाएँ, तो सिर्फ जीभ को ही मत तृप्त कीजिए। सोचिए कि आप हज़ारों साल पुरानी संस्कृति का स्वाद ले रहे हैं। उसके पीछे का हज़ारों साल पुराना इतिहास, कहानियाँ और अलग-अलग रंग-रूप भी याद कीजिएगा। ये सिर्फ एक मिठाई नहीं है, ये तो हमारे इतिहास और संस्कृति का एक मीठा और स्वादिष्ट हिस्सा है।वो भी ऐसा स्वाद, जो देवताओं से लेकर दादी-नानी तक सबका all-time favorite रहा है।

अब इजाज़त दीजिये। मेरा मन भी मालपुआ खाने का हो गया है! आप भी जाइए और खाइए, और हाँ, अगर आपकी थाली में रबड़ी-मालपुआ आ जाए, तो समझ लीजिए — ज़िंदगी सेट है! और हमें बताइए कि आपको कौन-सा वाला मालपुआ पसंद है!

मालपुआ ज़िंदाबाद, मिठास अमर रहे! 😋

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