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खस्ता-ए-इश्क़: लखनऊ की गलियों का वो नाश्ता, जिससे हो जाए प्यार!

Lucknow's Khasta: Culture in Every Layer, Flavor in Every Bite

लखनऊ के नवाबों की नगरी में, जहां हर बात में तहज़ीब और हर पकवान में लज़्ज़त है, एक ऐसी चीज़ है जो सुबह की चाय के साथ हो या शाम की गपशप के साथ, हमेशा दिल जीत लेती है। अरे! मैं किसी बड़े शाही पकवान की बात नहीं कर रही, बल्कि उस छोटी सी, कुरकुरी, परतदार और अंदर से मसालेदार चीज़ की बात कर रही हूँ जिसे हम प्यार से कहते हैं – लखनऊ का खस्ता!

जी हाँ दोस्तों, आज का हमारा विषय है “लखनऊ का खस्ता”। लेकिन इसे सिर्फ एक नाश्ता कहना, खस्ते के साथ नाइंसाफी होगी। यह तो लखनऊ की पहचान है, एक परंपरा है, और हर लखनवी के दिल की धड़कन है! तो चलिए, मेरे साथ खस्ते की इस चटपटी दुनिया में गोते लगाते हैं।

खस्ते का जन्म: एक शाही राज़ या आम आदमी की खोज?

अब खस्ते के जन्म को लेकर कई कहानियाँ हैं, कुछ मज़ाकिया तो कुछ थोड़ी फिल्मी।

कहानी नंबर 1: नवाबों की सुबह का नज़राना कुछ लोग कहते हैं कि खस्ते का जन्म नवाबों के रसोईघर में हुआ था। नवाब सुबह-सुबह कुछ हल्का और स्वादिष्ट नाश्ता चाहते थे, जो खाने में कुरकुरा हो और देर तक ताज़ा रहे। तब शाही बावर्ची ने कई प्रयोग किए और आखिरकार एक ऐसी चीज़ बनाई जिसकी परतें इतनी ख़स्ता थीं कि खाते ही मुंह में घुल जाती थीं। नवाब साहब ने पहला निवाला लिया और बोले, “अहा! यह तो वाकई ‘ख़स्ता’ है!” और बस, नाम पड़ गया ‘खस्ता’।

कहानी नंबर 2: व्यापारी की चटपटी सोच एक और कहानी है कि खस्ता किसी मेहनती व्यापारी की देन है। पुराने ज़माने में व्यापारी लंबी यात्राओं पर जाते थे, और उन्हें कुछ ऐसा चाहिए होता था जो रास्ते में खराब न हो और खाने में मज़ेदार हो। एक चतुर व्यापारी ने आटे में मसाला भरकर और उसे घी में तलकर एक ऐसी चीज़ बनाई जो कई दिनों तक चलती थी। वापसी पर उसने अपने पड़ोसियों को यह स्वादिष्ट चीज़ खिलाई और देखते ही देखते यह पूरे लखनऊ में मशहूर हो गई।

जो भी हो, एक बात तो तय है, खस्ते का जन्म या तो शाही अंदाज़ में हुआ या फिर आम आदमी की ज़रूरत से। पर आज यह दोनों का पसंदीदा है।


लखनऊ का खस्ता: क्यों है इतना खास?

आप पूछेंगे, “खस्ता तो पूरे उत्तर भारत में मिलता है, तो लखनऊ का खस्ता ही क्यों?” इसका जवाब भी उतना ही सीधा है जितना टेढ़ा खस्ते का आकार।

  1. ख़ास खस्तापन: लखनऊ के खस्ते की सबसे बड़ी पहचान उसका नाम है – “ख़स्ता”! इसकी परतें इतनी बारीकी से बनती हैं कि हर निवाला लेने पर कुरकुरी आवाज़ आती है और मुंह में घुल जाती है। यह कोई आम कुरकुरापन नहीं, यह ‘ख़ास खस्तापन’ है।

  2. मसालेदार जादू: खस्ते के अंदर की दाल (अक्सर उड़द या मूंग दाल) का मसाला, लखनऊ की खास सुगंधित मसालों से बनता है। उसमें हींग, सौंफ, लाल मिर्च और कई गुप्त मसाले होते हैं जो इसे एक अनोखा स्वाद देते हैं। यह अंदर से थोड़ा तीखा, थोड़ा चटपटा और बहुत ही स्वादिष्ट होता है।

  3. संगत का कमाल: खस्ते के साथ परोसी जाने वाली सफेद मटर की सब्ज़ी और आलू की सब्ज़ी (मसाला आलू) का तो क्या ही कहना! सफेद मटर की सब्ज़ी में हल्के खट्टे और तीखे मसाले होते हैं, वहीं आलू की सब्ज़ी में चटपटे टमाटर और धनिया का जादू होता है। इसके अलावा, इमली की चटनी और हरी चटनी भी इसका स्वाद दोगुना कर देती हैं। प्याज के लच्छे और हरी मिर्च का साथ इसे और भी लज़ीज़ बना देता है।

खस्ता और लखनवी तहज़ीब: एक अटूट रिश्ता

लखनऊ में खस्ता सिर्फ खाने की चीज़ नहीं, बल्कि एक सामाजिक परंपरा है।

  • सुबह का पहला प्यार: लखनवी लोग सुबह की शुरुआत खस्ते से करना पसंद करते हैं। गरमागरम खस्ता, साथ में मसाला आलू और मटर की सब्ज़ी… अहा! दिन बन जाता है।

  • मेहमान नवाज़ी: अगर घर में मेहमान आ जाएँ, तो उनके लिए खस्ता लाना एक रिवाज़ है। “चलिए, गरमागरम खस्ते खाते हैं” – यह वाक्य अक्सर सुनने को मिलता है।

  • शाम की रौनक: शाम के समय, जब दोस्त या परिवार के लोग इकट्ठा होते हैं, तो चाय के साथ खस्ते की प्लेट का होना आम बात है। यह सिर्फ पेट नहीं भरता, बल्कि रिश्तों में मिठास और गर्माहट भरता है।

खस्ते की खोज: लखनऊ की गलियों में

अगर आप असली खस्ते का स्वाद चखना चाहते हैं, तो आपको लखनऊ की पुरानी गलियों में जाना होगा। चौक, अमीनाबाद, हज़रतगंज की कुछ पुरानी दुकानों पर आज भी वही पारंपरिक स्वाद मिलता है। वहां जाइए, गरमागरम खस्ता खाइए, और महसूस कीजिए उस तहज़ीब को जो हर निवाले में बसी है।

एक बार मैंने एक बुजुर्ग लखनवी से पूछा, “चाचा, खस्ते में ऐसा क्या है जो दिल को भा जाता है?” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, खस्ता सिर्फ मैदा और दाल नहीं है। इसमें हमारे लखनऊ की गंगा-जमुनी तहज़ीब का स्वाद है, दोस्ती की मिठास है, और थोड़ी सी हींग की खुशबू, जो हमेशा याद दिलाती है कि हम लखनवी हैं!”


तो दोस्तों, अगली बार जब आप लखनऊ आएं या किसी लखनवी दोस्त से मिलें, तो खस्ते का स्वाद ज़रूर लें। यह सिर्फ एक नाश्ता नहीं, यह लखनऊ की एक कहानी है, जो हर परत में सिमटी हुई है। और हाँ, खाते हुए एक बात याद रखना, खस्ते को कभी जल्दबाजी में मत खाना, इसे धीरे-धीरे चखना, हर परत को महसूस करना, क्योंकि यह तो लखनऊ की तहज़ीब है, जो धीरे-धीरे ही समझ आती है!

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